Sunday, May 17, 2020

सतगुरु ईश्वर का दर्द RADHA SWAMI JI

सतगुरु ईश्वर का दर्द 


एक बूँद जो सागर का अंश थी एक बार हवा के संग बादलोँ तक पहुँच गई इतनी ऊँचाई पाकर उसे बड़ा अच्छा लगा अब उसे सागर के आँचल मेँ कितने ही दोष नज़र आने लगे लेकिन अचानक एक दिन बादल ने उसे ज़मीन पर एक गंदे नाले मेँ पटक दिया एकाएक उसके सारे सपने, सारे अरमां चकनाचूर हो गए ये एक बार नहीँ अनेकोँ बार हुआ वो बारिश बन नीचे आती, फिर सूर्य की किरणेँ उसे बादल तक पहुँचा देती अब उसे अपने सागर की बहुत याद आने लगी उससे मिलने को वो बेचैन हो गई बहुत तड़पी, बहुत तड़पी फिर एक दिन सौभाग्यवश एक नदी के आँचल मेँ जा गिरी उस नदी ने अपनी बहती रहनुमाई मेँ उसे सागर तक पहुँचा दिया।

सागर को सामने देख बूँद बोली हे मेरे पनाहगार सागर मैँ शर्मसार हूँ अपने किये कि सज़ा भोग चुकी हूँ आपसे बिछुड़ कर मैँ एक पल भी शांत ना रह पाई दिन-रैन दर्द भरे आँसू बहाए हैँ अब बस इतनी प्रार्थना है कि आप मुझे अपने पवित्र आँचल मेँ समेट लो सागर बोला - बूँद तुझे पता है तेरे बिन मैँ कितना तड़पा हूँ ! तुझे तो दुःख सहकर एहसास हुआ लेकिन मैँ-मैँ तो उसी वक्त से तड़प रहा हूँ जब तूने पहली बार हवा का संग किया था तभी से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ और जानती है उस नदी को मैँने ही तेरे पास भेजा था अब आ ! आजा मेरे आँचल मेँ बूँद आगे बढ़ी और सागर मेँ समा गई । बूँद सागर बन गई ये बूँद कोई और नहीँ ; हम सब ही वो बूँदेँ हैँ, जो अपने आधारभूत सागर उस परमात्मा से बिछुड़ गई हैँ। इसलिए ना जाने कितने जन्मोँ से भटक रहे हैँ और वो ईश्वर ना जाने कब से हमसे मिलने को तड़प रहा है उनका वो दर्द वो तड़प ही "पूर्ण सद्‌गुरु" के रुप मेँ इस धरती पर बार-बार अवतरित होता है । हमेँ उनसे मिलाने के लिए ही ये नदिया सत्संग है.

No comments:

Post a Comment

Radha Soami Ji

राधास्वामी जी

हर  नामें  तुल  न  पुजई सभु  दिठी  ठोक  बजाय सच्चे  नाम  के  सिवा  कोई  पूजा  नहीं । चाहे  कितने  पुन्य  दान  करो , मंदिरों ,  मस्जिदो...