सतगुरु ईश्वर का दर्द
एक बूँद जो सागर का अंश थी एक बार हवा के संग बादलोँ तक पहुँच गई इतनी ऊँचाई पाकर उसे बड़ा अच्छा लगा अब उसे सागर के आँचल मेँ कितने ही दोष नज़र आने लगे लेकिन अचानक एक दिन बादल ने उसे ज़मीन पर एक गंदे नाले मेँ पटक दिया एकाएक उसके सारे सपने, सारे अरमां चकनाचूर हो गए ये एक बार नहीँ अनेकोँ बार हुआ वो बारिश बन नीचे आती, फिर सूर्य की किरणेँ उसे बादल तक पहुँचा देती अब उसे अपने सागर की बहुत याद आने लगी उससे मिलने को वो बेचैन हो गई बहुत तड़पी, बहुत तड़पी फिर एक दिन सौभाग्यवश एक नदी के आँचल मेँ जा गिरी उस नदी ने अपनी बहती रहनुमाई मेँ उसे सागर तक पहुँचा दिया।
सागर को सामने देख बूँद बोली हे मेरे पनाहगार सागर मैँ शर्मसार हूँ अपने किये कि सज़ा भोग चुकी हूँ आपसे बिछुड़ कर मैँ एक पल भी शांत ना रह पाई दिन-रैन दर्द भरे आँसू बहाए हैँ अब बस इतनी प्रार्थना है कि आप मुझे अपने पवित्र आँचल मेँ समेट लो सागर बोला - बूँद तुझे पता है तेरे बिन मैँ कितना तड़पा हूँ ! तुझे तो दुःख सहकर एहसास हुआ लेकिन मैँ-मैँ तो उसी वक्त से तड़प रहा हूँ जब तूने पहली बार हवा का संग किया था तभी से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ और जानती है उस नदी को मैँने ही तेरे पास भेजा था अब आ ! आजा मेरे आँचल मेँ बूँद आगे बढ़ी और सागर मेँ समा गई । बूँद सागर बन गई ये बूँद कोई और नहीँ ; हम सब ही वो बूँदेँ हैँ, जो अपने आधारभूत सागर उस परमात्मा से बिछुड़ गई हैँ। इसलिए ना जाने कितने जन्मोँ से भटक रहे हैँ और वो ईश्वर ना जाने कब से हमसे मिलने को तड़प रहा है उनका वो दर्द वो तड़प ही "पूर्ण सद्गुरु" के रुप मेँ इस धरती पर बार-बार अवतरित होता है । हमेँ उनसे मिलाने के लिए ही ये नदिया सत्संग है.
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Radha Soami Ji