राधा स्वामी जी 🙏🙏🙏🙏
Beautiful Saakhi
एक सेवक सेवा करते करते बीमार हो गया, डॉक्टर ने उसे कहा कि तुम्हे सेवा में यात्रा करनी पड़ती है इसलिए यदि जीवित रहना चाहते हो तो एक स्थान पर बैठे रहो, यह सेवा छोड़ दो, नहीं तो तुम्हारा शरीर दो वर्ष से अधिक नहीं चलेगा। उसने उत्तर दिया कि सेवाहीन होकर दस वर्ष जीवित रहने से तो दो वर्ष सेवा करके मरना अच्छा है। जिसने बात सुनाई उसको दस वर्ष व्यतीत हो गए हैं और अभी भी उसी प्रकार सेवा कर रहा है, जिस प्रकार दस वर्ष पहले करता था।
🌹🙏🆚उसने कहा, मुझे विश्वास है कि औषधि की अपेक्षा, सेवा में स्वास्थ्य प्रदान करने की शक्ति अधिक है, जो डॉक्टर नहीं कर सकते वे सतगुरू कर सकते हैं🆚🙏🌹
राधा स्वामी जी
आप सभी से एक बहुत ज्यादा जरूरी विनती करना चाहता हूं विनती यह है कि कुछ व्हाट्सएप ग्रुप्स में और फेसबुक पर एक मैसेज डाला जा रहा है कि राधा स्वामी सत्संग ब्यास, डेरा बाबा जैमल सिंह के जो अकाउंट नंबर हैं वह दिए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि आप उसमें दान डालिए यानी सेवा डालिए जबकि ऐसा कोई भी मैसेज या कोई संदेश राधा स्वामी डेरे की तरफ से नहीं आया है अगर कुछ भी ऐसा डेरे की तरफ से होगा तो आपके आसपास के सेंटर/सब सेंटर/सत्संग पॉइंट से आपको इस चीज की जानकारी जरूर मिलेगी जी
राधा स्वामी जी
बड़े महाराज जी ने कहा था कि ना तो कभी सेवा रुकेगी,, और लंगर भी हमेशा चलता रहेगा.... आज इस lockdown में भी हम देख रहे है कि सेवा भी चल रही है और गुरु का लंगर भी.... सब कुछ बंद हो चुका है,, पर मालिक का दर खुला है और हमेशा खुला रहेगा....
🙏राधा स्वामी जी🙏🥰🥰🤗
एक सच्ची साखी राधा स्वामी जी
डेरे का लंगर खाने वाली संगत बाबा जी की ये लीला
गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी हजूर महाराज जी के समय की है साध संगत जी जब भी हम गुरु घर जाते हैं वहां पर जाकर सेवा करते हैं सत्संग सुनते हैं उसके साथ ही हम गुरु घर का लंगर भी खाते हैं इस साखी में हमें गुरु घर के लंगर की अहमियत के बारे में पता चलेगा ।
ये साखी एक सत्संगी की सच्ची कहानी है ,साध संगत जी संगत को बार-बार कहा जाता है कि जितनी जरूरत है उतना ही लंगर लीजिए यह गुरु घर का लंगर है इसे व्यर्थ मत कीजिए यह बार-बार संगत को कहा जाता है क्योंकि गुरु घर का लंगर हर किसी के नसीब नहीं होता वह जीव बहुत ही भागों वाले होते हैं जो गुरु घर का लंगर खाते हैं गुरु घर की सेवा करते हैं क्योंकि यह सब मालिक के हुक्म से ही होता है मालिक ही उन्हें वहां भेजता है संगत की सेवा करने के लिए हमें प्रेरित करता है हम अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते जो भी होता है उसके हुक्म से ही होता है
साध संगत जी यह बात उन दिनों की है जब स्टेशन पर कुछ सत्संगीयों की सेवा लगी हुई थी वहां पर कुछ काम चल रहा था जिसके कारण कुछ सत्संगी भाई वहां पर सेवा कर रहे थे तो उनका लंगर भी वहां पर ही आ जाता था क्योंकि स्टेशन से लंगर की ओर जाना मुश्किल होता था तो इसीलिए उनका लंगर स्टेशन पर ही पहुंचा दिया जाता था ताकि उन्हें कोई मुश्किल ना हो बाबा जी की संगत को कोई परेशानी ना हो तो साध संगत जी ऐसे ही उन सत्संगी भाइयों ने सेवा के दौरान स्टेशन के पास ही एक पेड़ के नीचे बैठकर गुरु घर का लंगर खाया ,लंगर खाने के बाद रोटी के कुछ टुकड़े वहां पर गिर गए और वह सेवादार लंगर खाकर वहां से चले गए वापस अपनी सेवा में लीन हो गए । साध संगत जी यह बात उस सत्संगी ने खुद संगत के बीच सतगुरु के सामने कही थी सतगुरु का सत्संग चल रहा था और वह सत्संग में खड़ा होकर कहने लगा कि हे सच्चे पातशाह ! मुझे आपसे एक अर्ज करनी है कृपया मुझे मेरी बात कहने दे सतगुरु ने कहा कि सत्संग के बाद कह देना फिर उसे बिठा दिया गया लेकिन कुछ देर बाद वह फिर खड़ा हो गया और कहने लगा सतगुरु मुझसे रहा नहीं जाता मुझे मेरी बात कहने दे ,तो सतगुरु ने कहा था कि चला ले जेडी तू बंदूक चलानी है तो उसने उस समय संगत को कहा था की ये जो आपके सामने बैठे हैं यह कोई इंसान नहीं है यह रब है यह मैंने खुद महसूस किया है मैं आपको अपनी बात बताता हूं पिछले जन्म में मैं एक चील था और डेरा ब्यास के पास मेरा ठिकाना था और वही रहता था एक दिन मैंने देखा कि जमीन पर कुछ रोटी के टुकड़े पड़े हुए हैं तो मैं वहां पर गया और मैंने वह रोटी के टुकड़े खाए जो कि डेरा ब्यास के लंगर के थे और उसके बाद ही मेरी मृत्यु हो गई और मुझे यह मनुष्य जन्म मिल गया यह बात मुझे अंतर्ध्यान होकर पता चली कि मैं पिछले जन्म में एक चील था, हे गुरु प्यारी संगते यह खुद रब है यह कहते नहीं है यह खुद ही रब है मेरी बात मानो ! जब मुझे मनुष्य जन्म मिला तो मुझे सतगुरु ने नामदान की बख्शीश भी कर दी उसके बाद मैं समझ गया था कि जो मैंने डेरे का लंगर खाया है यह सब उसी की वजह से है क्योंकि मुझ में ऐसी कोई भी ताकत नहीं है कि मैं गुरु तक पहुंच सकूं यह सब सतगुरु ने किया क्योंकि जो कोई भी गुरु घर का लंगर खा लेता है सद्गुरु उसका पार उतारा जरूर करते हैं इसलिए तो संगत को बार-बार कहा जाता है कि यह गुरु घर का लंगर है इसे व्यर्थ ना करें, इसे व्यर्थ ना करें,यह बात उन्होंने बहुत बार संगत के बीच कहीं उस समय बहुत सारी संगत के आंखों में आंसू भी आ गए थे । साध संगत जी इसीलिए तो फरमाया जाता है कि अब तो गुरु द्वारा नामदान की बक्शीश भी हो गई है सब कुछ हो गया है अब कमी हमारी तरफ से ही है जो हमें सतगुरु ने देना था हमें दे दिया है अब करनी करने की बारी हमारी है हम थोड़ी सी मेहनत करेंगे तो हमारा इस जन्म मरण के चक्कर से हमें छुटकारा मिल जाएगा सतगुरु हमें अपने साथ सचखंड ले जाएंगे हमें तो उस कुल मालिक का शुक्र करना चाहिए कि उसने हमें खुद अपने से मिला लिया खुद ही अपनी पहचान हमें करवा दी नहीं तो हमारी क्या औकात है कि हम गुरु की पहचान कर सकें सतगुरु हमारे कर्म नाम दान देते समय ही काट देते हैं जो भी बारी-बारी कर्म हमारे होते हैं वह तो गुरु घर का लंगर खाने से ही कट जाते हैं तो आप सोच सकते हैं कि जब सतगुरु नामदान की बख्शीश करते हैं तो हमारा पिछला जो भी हिसाब होता है उसे एकदम से साफ कर देते हैं और उस दिन से हमें एक और मौका उस कुल मालिक की भजन बंदगी करने का हमें देते हैं कि आज से दोबारा शुरू करो हमें पूरी तरह से निखार देते हैं अपना रंग हम पर छोड़ देते हैं और हमारी सारी मेल नामदान की बख्शीश के समय उतर जाती है हमारे सारे कर्म उस समय कट जाते हैं लेकिन यह बातें सतगुरु कहते नहीं हैं क्योंकि अगर वह यह सब बताने लग जाए तो हम में से कोई भी भजन सिमरन नहीं करेगा इसलिए सतगुरु कभी यह बातें कहते नहीं हैं और हमें केवल और केवल भजन बंदगी करने के लिए कहते हैं ताकि हम खुद पहचान कर सके खुद वहां तक पहुंच सके खुद जान सके उस मालिक से मिलाप कर सके, करने को सतगुरु बहुत कुछ कर सकते हैं अपनी एक दया मेहर की दृष्टि से ही हमारा पार उतारा कर सकते हैं लेकिन वह चाहते हैं कि उसके बच्चे खुद अपने पैरों पर खड़े हो खुद जाने खुद पहचान करें इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन करने के लिए कहते हैं हमें बार-बार समझाते हैं कि यह मनुष्य जन्म बहुत ही अनमोल है यह बार-बार नहीं मिलना अभी अगर थोड़ी सी मेहनत कर ली जाए तो हमारा पार उतारा हो सकता है हमारा उस कुल मालिक से मिलाप हो सकता है हम फिर से अपने असल धाम सचखंड जा सकते हैं सतगुरु ने नामदान की बख्शीश कर हमारी जिम्मेवारी ली है इसीलिए हमें जोर देकर समझाते हैं कभी हमें प्यार से समझाते हैं और कभी-कभी हमें डांट कर समझाते हैं डांटने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उनके बच्चे समझते नहीं उनका कहना नहीं मानते लेकिन जो उनके हुक्म की पालना करते हैं सतगुरु उनको किसी चीज की कमी नहीं रहने देते जैसे कि वह फरमाते हैं कि अगर नाम की कमाई की शब्द की कमाई की भजन सिमरन को पूरा समय दिया तो मालिक आपका परमार्थ भी सवार देगा और स्वार्थ भी बना देगा तो साध संगत जी हमें और क्या चाहिए सतगुरु ने खुद हमें चुना है खुद हमें नामदान की बक्शीश की है हमारी जिम्मेदारी ली है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि सतगुरु की याद में भजन सिमरन को पूरा समय दे ,उसके अच्छे बच्चे बनने की कोशिश करें ।
SATSANG -13 MAY 2020
जिस का रहा करता था हमें कभी ,
हर पल हर घड़ी इंतजार बाबा जी।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
सोम मंगल बीत जाते थे यादों में तेरी ,
सत्संग वाला आ जाता था बुध वीरवार जी।
शुक्र भी रहते यादों में, शनि उत्साहित रहते,
आने वाला है कल,सत्संग वाला इतवार जी।
अब तो ना कोई उमंग , ना कोई उत्साह ,
जिंदगी लगती है बिल्कुल बेकार बाबा जी।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
कितने चाव से और कितने भाव से हम ,
तब सत्संग घर आया करते थे ।
किया करते थे सेवा संगत की और ,
कृपा से झोली भर लाया करते थे ।
खुद मे सिमटा है हर कोई अब तो ,
बन्द हुआ पड़ा हर द्धार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
बेशक संगत से हम कई सेवादारों का ,
बर्ताव हुआ करता था अहंकार भरा ।
फिर भी मिल जाता था संगत से ,
हम सब को,प्यार बड़ा, सत्कार बड़ा ।
बख्श दो अब तो हम गुनाहगारों को ,
दे दो, संगत का वोही प्यार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
दया कर दो हम पापी जीवों पर ,
CORONA का कर दो संहार दाता ।
दे दो सेवा सत्संग फिर से सब को ,
खोल दो सत्संग घरों के द्बार दाता ।
कर रहा हर कोई सेवादार विनती ,
कर रही सब संगत पुकार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ।
जिस का रहा करता था हमें कभी ,
हर पल हर घड़ी इंतजार बाबा जी।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
सोम मंगल बीत जाते थे यादों में तेरी ,
सत्संग वाला आ जाता था बुध वीरवार जी।
शुक्र भी रहते यादों में, शनि उत्साहित रहते,
आने वाला है कल,सत्संग वाला इतवार जी।
अब तो ना कोई उमंग , ना कोई उत्साह ,
जिंदगी लगती है बिल्कुल बेकार बाबा जी।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
कितने चाव से और कितने भाव से हम ,
तब सत्संग घर आया करते थे ।
किया करते थे सेवा संगत की और ,
कृपा से झोली भर लाया करते थे ।
खुद मे सिमटा है हर कोई अब तो ,
बन्द हुआ पड़ा हर द्धार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
बेशक संगत से हम कई सेवादारों का ,
बर्ताव हुआ करता था अहंकार भरा ।
फिर भी मिल जाता था संगत से ,
हम सब को,प्यार बड़ा, सत्कार बड़ा ।
बख्श दो अब तो हम गुनाहगारों को ,
दे दो, संगत का वोही प्यार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ?
दया कर दो हम पापी जीवों पर ,
CORONA का कर दो संहार दाता ।
दे दो सेवा सत्संग फिर से सब को ,
खोल दो सत्संग घरों के द्बार दाता ।
कर रहा हर कोई सेवादार विनती ,
कर रही सब संगत पुकार बाबा जी ।
कहां खो गया वो हमारा आज ,
सेवा सत्संग वाला इतवार बाबा जी ।
राधा स्वामी जी
बहुत ही सुन्दर दृष्टांत
🔸🔸🔹🔹🔸🔸एक माता आटा गूंध रही थीं, इतने में उसका चार साल का बच्चा जाग जाता है, और रोना शुरु कर देता है । मां दौड़कर उसके पास आती है और ढेर सारे खिलौने उसके पास डाल देती है । और एक-दो खिलौने उसके सामने बजा कर उसके हाथ में देना चाहती है ।
किन्तु बच्चा खिलौने हाथ में लेने के बजाए उन्हें पैरों की ठोकर से दूर फेंक देता है और जमीन मैं पसर जाता है और हाथ-पैर मारकर जोर जोर से रोने लगता है।
यह सब देख कर मां प्यार के जोश में आकर बच्चे को अपनी गोदी में उठा लेती है, और उसे खूब चूमती-चाटती है, उसे सहलाती है ।
बच्चा अपनी मां का प्यार पाकर परम शांति का आनन्द लेता हुआ फिर सो जाता है या शांत बैठ जाता है । मां भी अपने काम में लग जाती है ।
बस यही कुछ हाल यहां भी होता है जब साधक भजन भक्ति में लगकर रोता गिड़गिगिड़ाता है, फरियाद करता है , तो उसके आगे पीछे भी मोटर , बिल्डिंग गुड़िया, गुड्डे आदि खिलौने डाल दिये जाते हैं ,और वह उन्हीं में उलझ कर रह जाता है ।
और अपने असली लक्ष्य से भटक कर सत्य मार्ग को खो बैठता है । और जिंदगी भर रोता और दुख उठाता है ।
अगर वह भी उस बच्चे की तरह उसको लात मार देता तो आज वह भी अपने प्रभु की गोद में बैठा होता ।
दो नावों में एक साथ बैठना संभव नहीं । या तो दुनिया का मजा लूट लो या आत्मा के आनंद का ।।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
RADHA SOAMI JI
एक सच्ची साखी राधा स्वामी जी
एक पुरानी कथा इस समय के लिए आज भी बिल्कुल प्रासंगिक है
एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।
...✍
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी। नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा :-
...✍
"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए।"
...✍
अब इस दोहे का दरबार में उपस्थित सभी व्यक्तियों ने अपनी-अपनी सोच के अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर तबला बजाने लगा।
...✍
जब यह दोहा गुरु जी ने सुना तो गुरु जी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।
...✍
दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
...✍
दोहा सुनते ही राजा के पुत्र युवराज ने भी अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया।
...
राजा बहुत ही अचम्भित हो गया।
सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या! अचानक एक दोहे से सब अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं ,
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक सामान्य नर्तिका होकर तुमने सबको लूट लिया ।"*
...✍
जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "राजा ! इसको नीच नर्तकी मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है क्योंकि इसने दोहे से मेरी आँखें खोल दी हैं।दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला।" यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
...✍
राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ । आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे तो आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दे दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही । क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?"
...✍
युवराज ने कहा - "पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज सिंहासन नहीं दे रहे थे। मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था । लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है। धैर्य रख ।"
...✍
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक सुन्दर, सुशील राजकुमार आये हुए हैं।तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो ।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब कुछ त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।
...✍
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा नृत्य बन्द करती हूँ और कहा कि "हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना । बस, आज से मैं सिर्फ तेरा ही सुमिरन करुँगी ।"
Same Implements on us at this Lockdown/Curfew
"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई ।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए।"
आज हम इस दोहे को यदि हम कोरोना को लेकर अपनी समीक्षा करके देखे तो हमने पिछले 22 तारीख से जो संयम बरता, परेशानियां झेली ऐसा न हो कि हमारी अंतिम क्षण में एक छोटी सी भूल, हमारी लापरवाही, हमारे साथ पूरे समाज को न ले बैठे।
आओ हम सब मिलकर कोरोना से संघर्ष करे , घर पर रहे, सुरक्षित रहे व सावधानियों का विशेष ध्यान रखें।
Vr
🙏🙏Radha swami ji🙏🙏
RADHA SOAMI JI
एक सच्ची साखी राधा स्वामी जी
8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर पूछने लगा,--क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।
बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा!
-- ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?
-- मुझे ईश्वर चाहिए। आपकी दुकान में है?
दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।
लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा,
-- तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?
पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं ৷ लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे !
बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,
----इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ? डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
-- हां, मिलेंगे...! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?
-- सिर्फ एक रूपए।
-- कोई दिक्कत नहीं है। एक रूपए में ही ईश्वर मिल सकते हैं।
दुकानदार बच्चे के हाथ से एक रूपए लेकर उसने पाया कि एक रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है। इसलिए उस बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा, यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।
अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे की मां का आप्रेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं।
डिस्चार्ज के कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए। डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, "टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है"।
महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी, उसमें लिखा था-
"मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है ... मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना ही चाहती हैं तो अपने अबोध बच्चे को दीजिए जो सिर्फ एक रूपए लेकर नासमझों की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा। उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते है। विश्वास इसी को ही कहते हैं। ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे एक रूपए में भी मिल सकते हैं।"
आइए, इस महामारी से बचने के लिए हम सभी मन से ईश्वर को ढूंढे ... उनसे प्रार्थना करें... उनसे माफ़ी मांगे..!!!
Collection, it's not Sakhi but lesson of faith, forwarding for building faith ! 🙏
राधा स्वामी जी
मौत अटल है ,
मौत सबको ही आनी है ,
मौत से आज तक कोई नहीं बच सका ,
मौत चाहे कोरोना से आये , या फिर किसी अन्य बीमारी से , एक्सीडेंट से या किसी और वजह से ,
मौत से यूँ मत डरो ना ,
जरा सा 84 से भी तो डरो ना ,
भजन-सिमरन भी तो करो ना ,
और जीते-जी ही मरो ना ,
और मुक्ति हासिल करो ना ,
सतगुरुजी की राह हासिल करो ना ,
भाणा भी माना करो ना ,
हर प्राणी में प्रभु को देखा करो ना ,
सब से प्रेम करो ना , सबकी सेवा करो ना
उस एक ही ☝🏻 प्रभु का ध्यान करो ना , उसके नाम का सदा सिमरन करो ना ,
नाम की कमाई , शब्द की कमाई भी तो करो ना ,
अपना जीवन पूरी तरह प्रभु परमात्मा को समर्पित कर , अमर जीवन और परम आनंद की प्राप्ति करो ना ,
अब भी वक़्त है , , ,
भजन-सिमरन करो ना ,
भजन-सिमरन करो ना ।।
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी...🙏☺️
1. दिल ही दिल में "नाम" की
बरसात हो जायगी।
अन्तर में देखो "सतगुरु" से
बात हो जायगी।
शिकवा ना करना "सतगुरु"से
मिलने की।
आंखे बंद करना "सतगुरु" से
मुलाकात हो जायगी।
2. निकलते आँसुओं को
देख कर,
आँखें भी शायद सोचती
हैं अब...
कि पता नहीं कितना
वक्त लगेगा,
इसको सतगुरू का दीदार
पाने में॥
3. हे परमात्मा..
✨सुकून उतना ही देना प्रभु जितने से जिंदगी चल जाए,
औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए,
रिश्तो में गहराई इतनी हो कि प्यार से निभ जाए,
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें,
साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाएँ,
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाएँ
4. सत्संग
जैसे पके हुए फल की तीन पहचान होती हैं। एक तो वह नर्म हो जाता हैं, दूसरी वह मीठा हो जाता हैं और तीसरी उसका रंग बदल जाता हैं।।
जिसमें ये लक्षण ना हों वह कभी पका हुआ नहीं हो सकता हैं।।
इसी तरह से परिपक्व व्यक्ति की भी तीन पहचान होती हैं। पहली उसमें विनम्रता होती हैं, दूसरी उसकी वाणी में मिठास होती हैं और तीसरी उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का रंग होता हैं।।
5. तमन्ना कुछ भी नही,
एक तेरे दिदार के बिना,
जिंदगी अधूरी हैं मेरे सतगुरु,
तेरे प्यार और आशिर्वाद के बिना।
"सतगुरु" तुम्हारी रहमत ने दी
जो मोहब्बत मुझे,
अब किसी महोब्बत की परवाह नहीं।
तुम मिले तो मिली ऐसी जन्नत मुझे,
अब किसी और जन्नत की परवाह नही
6. सच्ची बात 🙏☺️
.
एक बुजुर्ग से किसी ने पूछा"जब भगवान के भजन सुनने में बैठते है तो जल्दी नींद आ जाती है और जब कोई महफिल की दुनिया या कोई सगींत (D J) का कार्यक्रम हो तो सारी रात नींद नहीं आती"
.
ऐसा क्यूँ?
.
बुजुर्ग ने बड़ा ही खूबसूरत जवाब दिया:
.
"नींद हमेशा फूलों की सेज पर आती है
काँटो के बिस्तर पर नहीं"
.
🙏☺️राधा स्वामी जी ☺️🙏
7. काश.. किसी खूबसूरत मौसम में...
सतगुरू मेरी आँखों पे अपना हाथ रख दे..
और हँसते हुए कह दे...
पहचान लो तो हम तुम्हारे...
ना पहचानो तो तुम हमारे......
🙏☺️
8. परेशानिया" चाहे जितनी हो
"चिंता" करने से और ज्यादा
"खामोश" होने से बिलकुल "कम"
"सब्र" करने से "खत्म" हो जाती है।
और मालिक का "शुक्र" करने से
खुशियो" मे बदल जाती है।
🙏☺️
9. एक फूल भी अक्सर बाग सजा देता हैँ
एक सितारा संसार चमका देता हैँ
जहाँ दुनिया भर के रिश्ते काम नही आते
वहाँ मेरा सदगुरु जिन्दगी बना देता हैँ...
10. मानव मन की अवस्था :
रात के अँधेरे से डरते हें
निरंकार से क्यू नही..?
सपनो से डरते हें
सतगुरु से क्यू नही..?
बिच्छु से डरते हें
गुनाहों से क्यू नही..?
स्वर्ग में जाना चाहते हें
सत्संग में क्यू नही..?
रिश्वत देते हें
सेवा क्यू नही..?
मनमत पर चलते हें
गुरुमत पर क्यू नही..?
गाने गाते हें
शब्द क्यू नही..?
सत्संग सुनते हें
अमल करते क्यू नही..?
11. मेरा हर त्यौहार बाबा जी से है..
"रक्षा बंधन"....डोर नाम की बाँधी है।
"होली"...नाम रंग में रंग दिया।
"जन्म अष्टमी"..बाबा जी ने
नाम देकर नया जन्म दिया।
"दिवाली"..रौशनी की नई राह दिखाई
"ईद"...खुद चाँद है बाबा जी।
"फ्रेंडशिप डे"..दोस्त से बड़कर
है बाबा जी...
"फादर्स डे"..पिता की तरह
गलत काम से रोकते है
"मदर्स डे"..माँ की तरह
ख्याल रखते है
"वेलेंटाइन डे"..इस दुनियाँ में
सबसे सच्चा प्यार करते है..
फिर क्यों न शुक्र करूं में उसका।
🙏☺️
12. भरोसा जितना कीमती होता है...!
धोखा उतना ही महंगा हो जाता है
फूल कितना भी सुन्दर हो🌷
🌸 तारीफ खुशबू से होती है
इंसान कितना भी बड़ा हो
कद्र उसके गुणों से होता है"
13. एक अरदास
जिन्दगी बख्शी है,
तो जीने का सलीका भी बख्श।
ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक,
तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श।
सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे,
ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श।
किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से,
ऐसा अहसास भी तू मुझे बख्श।
आपके चरणकमल में मैं लगा रहूँ,
हे दाता ऐसा ध्यान भी बख्श।
रिश्ते जो बनाये मेरे मालिक,
उनमें अटूट प्यार तू भर।
ज़िम्मेदारियाँ बख्शी हैं मेरे पालनहार,
तो उनको निभाने की समझ भी बख्श।
बुद्धि बख्शी है मेरे मालिक,
तो विवेक बख्श।
एक और अहसान कर दे,
जो कुछ है, वो सब तेरा है,
तो फिर इस मेरी "मैं" को भी बख्श।
14. अमृत नाम महा रस मीठा
जिसने पिया उसने सचखण्ड पाया
"हर रात के पिछले पहर मेँ एक गजब की (अनमोल) दौलत लुटती है।
जो जागते हैं वह पाते हैं जो सोते हैं वह खोते हैं।"
एक यही वह समय है जिसमेँ
जागने वाला कमाता है
और
सोने वाला गवाता है ।
🙏🙏सिमरन करो जी🙏🙏
सतगुरु ने याद किया है जो वादा किया है उसको निभाना है सतगुरु से आज प्रोमिस की उसको पूरा करना है
🙏🙏राधा स्वामी जी🙏🙏
15. सेवा का जुनून जिनके
पास होता है,
सच मे वो बन्दा तो
बादशाह होता है.
सतगुरू के दिल मे
वो राज करता है.
और सतगुरू हर पल
उसपे नाज करते है.
16. नाम तेरे दी महक दाता
मैं सासां विच बसावां 👏
तुहाडे चरणां 👣 दी मिट्टी नू
मैं पलका 👀 नाल छुअॉवां
तेरे किते एहसाना दा मैं
लख लख शुक्र मनावा.....😌🌷🙏
17.
भजन :-
तू मेरा जीवन आसरा मेरे शहनशाह मेरे सतगुरु प्यारे
मैं ता बस हुन जी रही आ इक तेरे सहारे
🌻🌹जरूर सुने🌹🌻
18.
• •गुरु•••‼️ एक दिन संध्या के समय श्री गुरु नानक देव के दर्शन करने के लिए हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया।
गुरुदरबार में कीर्तन चल रहा था रागी शबद गा रहे थे-
राजा ने प्रश्न किया- महाराज! अगर किस्मत के लेख मिटते नहीं हैं,तो संगत करने का क्या लाभ है?
राजा ने प्रश्न किया- महाराज! अगर किस्मत के लेख मिटते नहीं हैं,तो संगत करने का क्या लाभ है?
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा- इसका उत्तर आपको समय आने पर देंगें।अभी आप कुछ आराम कर लीजिये।
राजा रात को सोया तो उसे स्वप्न आया,कि उसका एक अति दरिद्र परिवार में जन्म हुआ है और उसका जीवन अत्यंत दरिद्रता में बीत रहा है।वो युवा हुआ, उसका विवाह हुआ और उसे चार संतानें हुईं।उसके जीवन के चालिस वर्ष बीत चुके हैं।
एक दिन बच्चों की जिद पर वो एक पीलू के वृक्ष पर चढ़कर उनके लिए पीलू तोड़कर नीचे फेंक रहा है और कुछ खुद भी खा रहा है।एक पके गुच्छे को तोड़ने के लिए वो जैसे ही थोड़ा ऊपर उठा तो उसका पैर फिसल गया,और वो धड़ाम से नीचे गिर गया।
राजा यकदम उठ बैठा।भोर हो रही थी और वो दातुन करने लगा,तो मुंह से एक पीलू का बीज निकला।राजा आश्चर्यचकित हो गया।
सुबह जब वो गुरु दरबार में आया,
तो श्री गुरू नानक देव जी ने उसे वन विहार करने के लिए चलने को कहा।और श्री गुरु नानक देव जी और राजा वन के लिए चल पड़े।
राजा वन में श्री गुरु नानक देव जी से बिछड़ गया,और प्यास से व्याकुल होकर जल की तलाश में एक नगर में जा पहुँचा।
कुएं पर पानी भरती औरतों से जब उसने पानी माँगा तो वो भय से चीखने लगीं।राजा अभी हैरान खड़ा ही था कि कुछ बच्चे उससे आकर लिपट गए।कुछ बड़े बजुर्ग और एक औरत उसे हैरानी से देख रहे थे।
राजा ने उन्हें थोड़ा गौर से देखा- अरे! ये क्या,
ये तो वही लोग हैं जिन्हें मैंने सपने में अपने कुटुंब के रूप में देखा था।अरे! ये बच्चे भी वही हैं जो सपने में मेरी संतानें थीं।
पर इनका अस्तित्व कैसे हो सकता है?राजा अभी ये सोच ही रहा था,कि सब लोग उसे खींचकर बेटा, बापू और स्वामी कहते हुए लिपट गए।
तभी श्री गुरु नानक देव जी वहां आ गए।
राजा ने श्री गुरु नानक देव जी से खुद को बचाने की गुहार लगाई।
श्री गुरु नानक देव जी ने उन लोगों से पूछा- आप इन्हें अपने साथ क्यों ले जा रहे हो?
उन्होंने कहा- ये हमारा परिजन है।
इसे ईश्वर ने हमारे लिए वापिस भेजा है।
अभी कल ही ये बच्चों के लिए पीलू तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ा था,और वृक्ष से गिरने से इसकी मौत हो गई थी।
कुछ और परिजनों के इंतजार में इसका शरीर वैधराज के पास रखा था।हम उसे ही लेने आज जा रहे थे,कि ये जीवित होकर हमारे सामने आ गया।
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा- भले लोगों! ये आपका परिजन नहीं है।आपके परिजन का शरीर वैध के घर में सुरक्षित पड़ा है
लोग राजा और श्री गुरु नानक देव जी के साथ वैध के घर गए,और हूबहू राजा से मिलती देह देखकर हैरान रह गए
उन्होंने राजा से माफी मांगी और उन्हें विदा किया
श्री गुरु नानक देव जी ने राजा से कहा - राजन! तुमने कहा था ना कि अगर लिखा मिट नहीं सकता है,
तो सत्संग का क्या लाभ?
आप जो अभी देख के आ रहे हो,
वो आपका आने वाला जन्म था।
जो आपको इस जन्म के कुछ गलत कार्यों के कारण भोगना था, लेकिन साधू जनों की संगत करने के कारण श्री गुरु नानक देव जी ने आपकी दरिद्रता के चालिस साल,
एक सपने में ही व्यतीत कर दिए
जिस तरह राजमुद्रा पर अंकित अक्षर उल्टे होते हैं,
लेकिन स्याही का संग मिलते ही वो राजपत्र पर सीधे छपते हैं,
उसी तरह सत्संग का साथ हमारी मलिन बुद्धि को सीधे राह पर डाल देता है
राजा ये वचन सुनकर,
धन्य "श्री गुरु नानक देव जी" कहते हुए उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।
------ तात्पर्य ------
सतगुरु अपने शिष्य की हर तरह संभाल करते हैं कोई आंच नहीं आने देते। सुई की शूल बनाकर कर्म कटवाते हैं और भवसागर से पार उतार देते हैंl
19.
मुझे कौन याद करेगा इस भरी दुनिया में, हे ईश्वर ! यहाँ तो बिना मतलब के तो लोग तुझे भी याद नहीं करते…!🙏🏻राधा स्वामी जी🙏🏻🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹
20. राधा स्वामी जी ☺️🙏
बाबा जी कहते हैँ।
सिमरण आप करो रास्ता हम बनायेगेँ।
खुश आप रहो खुशियाँ हम दिलायेगेँ।
आप गुरु की सँगत से जुड़े रहे।
साथ हम निभायेगे
🙏☺️ राधा स्वामी जी ☺️🙏
21. अनमोल वचन ●
☆ चिंता न करो ☆
¤ एक सत्संगी के लिए चिंता करना अपने सतगुरू और उसकी तरफ से हमारी देख भाल करने की योग्यता के विश्वास को तोडना है ।
¤ अगर फर्ज को पूरी ईमानदारी और पूरी योग्यता से निभा रहे हैं, तो अपने बच्चों , अपने कारोबार , अपने कामकाज , अपने सम्बन्ध , संसार , शांति , आतंकवाद , अपनी सेहत , अपनी हैसियत , रहन-सहन आदि की चिंता नहीं करनी चाहिए ।
¤ अगर हम चिंता करते हैं तो हम बेईमान हैं । वो कहता है चिंता ना करो अगर हमें चिंता करनी है तो "भजन और सिमरन" की चिंता करनी है ।
¤ जो कुछ भी हमने करना है वो एक झटके में कर देना है । जो किस्मत में लिखा है वो जरूर होगा ।
¤ अपनी जिन्दगी में ओर घटना नहीं होगी जो कुछ भी घटा है या घट रहा है या घटेगा वह उसकी इच्छा अनुसार ही है।
हजुर महाराज श्री चरन सिंह जी..
👏👏👏👏👏👏👏👏
22. राधा स्वामी जी ☺️🙏
बुल्ले शाह कहते हैं...
उस दे नाल यारी कदी ना रखियो,
जिस नू अपने ते गुरूर होवे...
माँ बाप नू बुरा ना अखियो,
चाहे लाख उन्हां दा क़ुसूर होवे...
राह चलदे नू दिल न दैयो,
चाहे लख चेहरे ते नूर होवे
ओ बुल्लेया दोस्ती सिर्फ उथे करियो,
जिथे दोस्ती निभावन दा दस्तूर होवे..!!
🙏☺️ राधा स्वामी जी ☺️🙏
23. राधा स्वामी जी ☺️🙏
पढ़ पढ़ किताबां इल्म दियां तूँ नाम रख लिया काज़ी,
हथ विच फड़ के तलवार तूँ नाम रख लिया गाजी,
मक्के मदीने घूंम आया ते नाम रख लिया हाजी,
बुल्लेशाह हासिल की किता, जे तूँ यार न रखिआ राज़ी.
🙏☺️
24. राधा स्वामी जी ☺️🙏
बहन कहती है ये मेरीे whatsapp की पकी सहेली है
भाई कहता है ये मेरा पक fb का दोस्त है ।
पर स्वामीजी महाराज तो कुछ और बात कर रहे है
कहते है सुन मेरी प्यारी आत्मा
शब्द और गुरु के सिवा तेरा कोई मित्र नहीं।
आइए बानी को श्र्वन करे।
.
"मित्र तेरा कोई नही संगीयन् में
पड़ा क्यों सोवे इन ठगीयन में
चेत कर प्रीत करो सत्संग में
गुरु फिर रंग दे नाम अरंग में"
25. राधा स्वामी जी ☺️🙏
एक शख्स ने बाबाजी से सवाल किया जब जाना ही आत्मा को है। भजन सिमरन करके शरीर को पीड़ा क्यों दे शरीर तो यही जल जाएगा ।
बाबा जी बेटे दूध पीते हो तो बर्तन में
डाल कर गर्म क्यों करते हो वो इसलिए क्योंकि दुध बिना बर्तन के गर्म नहीं होगा। बर्तन जलेगा तभी दूध गर्म होगा उसी प्रकार शरीर में पीड़ा होगी तभी आत्मा तृप्त होगी। इसी प्रकार शरीर से होकर ही भजन सिमरन आत्मा तक पहुचता है।
🙏☺️ राधा स्वामी जी ☺️🙏
26. राधा स्वामी जी ☺️🙏
भजन में लगाया गया प्रत्येक पल अपनी मंजिल के नजदीक ले जाता है
और हमारे कर्मो के भारी बोझ को हल्का करता है | अपने कर्मो का एक
अंश ही हमें इस जीवन में भुगतना पड़ता है, क्योकि हमारे अधिकांश कर्मो का हिसाब भजन के द्वारा चुकाया जा सकता है | इसलिये पूरी लगन के साथ जितना ज्यादा समय हम भजन को देंगे उतनी ही जल्दी हमारे कर्मो का कर्ज अदा होगा | इस प्रकार हमारा आवागमन के चक्र से छुटकारा हो जायेगा और हम अन्त में परमात्मा में-स्थायी आनंद के सागर में-समा जायेंगे |
हजुर महाराज जी
सन्तमत दर्शन -2
पत्र -114
🙏☺️ राधा स्वामी जी ☺️🙏
27. राधा स्वामी जी संगत सारी नू बाबा जी दी प्यारी नू ☺️🙏
मालिक को सेवा की जरूरत नही होती वह तो इस सृष्टि का रचयिता हैं। वह तो सारे काम स्वयं कर सकता हैं। मालिक हमें सेवा इसलिए बक्शता हैं ताकि हम सेवा करके अपने आप को नम्र बना सके, अपने अंदर नम्रता ला सके। और प्रेम की भावना जाग्रत कर सके।
🙏☺️ राधा स्वामी जी ☺️🙏
28. मत करना अभिमान खुद पर ऐ इन्सान ! तेरे और मेरे जैसे कितनो को ईश्वर ने माटी से बनाकर माटी में मिला दिया !
Guru Pyari Sadh Sangat ji Radha Swami Ji 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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Radha Soami Ji