Monday, May 18, 2020

सत्संग सार बन्दीछोड कबीर साहेब

सत्संग सार🌷



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 एक संत हुआ करते थे । उनकी भक्ति इस कदर थीं कि वो अपनी धुन में इतने मस्त हो जाते थे की उनको कुछ होश नहीं रहता था । उनकी अदा और चाल इतनी मस्तानी हो जाती थीं । वो जहाँ जाते , देखने वालों की भीड़ लग जाती थी। और उनके दर्शन के लिए लोग जगह -जगह पहुँच जाते थे । उनके चेहरे पर तेज साफ झलकता था।
वो संत रोज सुबह चार बजे उठकर ईश्वर का नाम लेते हुए घूमने निकल जाते थे। एक दिन वो रोज की तरह अपने मस्ती में मस्त होकर झूमते हुए जा रहे थे।
रास्ते में उनकी नज़र एक देव पर पड़ी और उस देव के हाथ में एक डायरी थीं । संत ने देव को रोककर पूछा आप यहाँ क्या कर रहे हैं  प्रभु ! और ये डायरी में क्या है ? देव ने जवाब दिया कि इसमें उन लोगों के नाम है जो ईश्वर को याद करते है ।
यह सुनकर संत की इच्छा हुई की उसमें उनका नाम है कि नहीं, उन्होंने पुछ ही लिया की, क्या मेरा नाम है इस डायरी में ? देव ने कहा आप ही देख लो और डायरी संत को दे दी । संत ने डायरी खोलकर देखी तो उनका नाम कही नहीं था । इस पर संत थोड़ा मुस्कराये और फिर वह अपनी मस्तानी अदा में ईश्वर को याद करते हुए चले गये ।

दूसरे दिन फिर वही देव वापस दिखाई दिये पर इस बार संत ने ध्यान नहीं दिया और अपनी मस्तानी चाल में चल दिये।इतने में देव ने कहा आज नहीं देखोगे डायरी । तो संत मुस्कुरा दिए और कहा, दिखा दो और जैसे ही डायरी खोलकर देखा तो, सबसे ऊपर उन्ही संत का नाम था
इस पर संत हँस कर बोले क्या ईश्वर के यहाँ पर भी दो-दो डायरी हैं क्या ? कल तो था नहीं और आज सबसे ऊपर है ।
इस पर देव ने कहा की आप ने जो कल डायरी देखी थी, वो उनकी थी जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं । आज ये डायरी में उन लोगों के नाम है, जिनसे ईश्वर स्वयं प्यार करता है ।
बस इतना सुनना था कि वो संत दहाड़ मारकर रोने लगे, और कितने घंटों तक वही सर झुकाये पड़े रहे, और रोते हुए ये कहते रहे हे ईश्वर यदि में कल तुझ पर जरा सा भी संशय कर लेता तो मेरा नाम कही नहीं होता । पर मेरे जरा से संतोष पर तु मुझ अभागे को इतना बड़ा पुरस्कार देगा । तू सच में बहुत दयालु हैं तुझसे बड़ा प्यार करने वाला कोई नहीं और बार-बार रोते रहे।।

ईश्वरीय शक्तियाँ और वरदान तो सूक्ष्म हैं। जैसे बरसात पड़ती है तो प्यासी धरती उसे सोख लेती है और बदले में हरी भरी होकर जगत की पालन करती है। सूर्य की धूप आती है उसे मानव शरीर, पेड़-पौधे, जीव-जंतु ग्रहण कर उपयोग में लाते हैं। हवा चलती है उससे भी मानव तथा पर्यावरण लाभान्वित होता है। ये सब भौतिक शक्तियाँ हैं जिन्हें स्थूल जगत प्राप्त करता है और अपनी क्रियाओं को चलाता है। परमात्मा तेरी मुझपर सर्वदा अनुकम्पा है



प्रेषक-
बन्दीछोड कबीर साहेब

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