Monday, May 18, 2020

राधास्वामी जी

हर  नामें  तुल  न  पुजई
सभु  दिठी  ठोक  बजाय

सच्चे  नाम  के  सिवा  कोई  पूजा  नहीं ।
चाहे  कितने  पुन्य  दान  करो ,
मंदिरों ,  मस्जिदों ,  गुरुद्वारों ,  चर्चों  में  ही  क्यों  न  जाओ ।
कितने  ही  बार  गंगा  स्नान  करो  या  पहाड़ों  तीर्थों  की  ठोकरें  ही  क्यों  न  खाओ ,
उस  नाम  की  बराबरी  नही  कर  सकते ।

हरि  की  पूजा  दुलंभ  है  संतो
मनमुख  थाह  न  पाई  हे

उस  हरि  यानि  परमात्मा  की  भक्ति  बहुत  ही  दुर्लभ  है ।
यह  मनमुखों  के  पले  नहीं  पड़ती ।

गुरुमुख  होय  सो  काया  खोजे

जो  गुरुमुख  होते  हैं  वो  उस  मालिक  की  खोज  अपने  शरीर  के  अंदर  ही  करते  हैं ।
जो  सतगुरु  के  कहने  अांतरिक  सतगुरु  सेवा  में  लगते  हैं ,  उन्हें  सचखंड  में  मान  मिलता  है ।
जिन  सेविया  तिनि  पाइया  मान

🙏राधास्वामी जी🙏

सत्संग सार बन्दीछोड कबीर साहेब

सत्संग सार🌷



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 एक संत हुआ करते थे । उनकी भक्ति इस कदर थीं कि वो अपनी धुन में इतने मस्त हो जाते थे की उनको कुछ होश नहीं रहता था । उनकी अदा और चाल इतनी मस्तानी हो जाती थीं । वो जहाँ जाते , देखने वालों की भीड़ लग जाती थी। और उनके दर्शन के लिए लोग जगह -जगह पहुँच जाते थे । उनके चेहरे पर तेज साफ झलकता था।
वो संत रोज सुबह चार बजे उठकर ईश्वर का नाम लेते हुए घूमने निकल जाते थे। एक दिन वो रोज की तरह अपने मस्ती में मस्त होकर झूमते हुए जा रहे थे।
रास्ते में उनकी नज़र एक देव पर पड़ी और उस देव के हाथ में एक डायरी थीं । संत ने देव को रोककर पूछा आप यहाँ क्या कर रहे हैं  प्रभु ! और ये डायरी में क्या है ? देव ने जवाब दिया कि इसमें उन लोगों के नाम है जो ईश्वर को याद करते है ।
यह सुनकर संत की इच्छा हुई की उसमें उनका नाम है कि नहीं, उन्होंने पुछ ही लिया की, क्या मेरा नाम है इस डायरी में ? देव ने कहा आप ही देख लो और डायरी संत को दे दी । संत ने डायरी खोलकर देखी तो उनका नाम कही नहीं था । इस पर संत थोड़ा मुस्कराये और फिर वह अपनी मस्तानी अदा में ईश्वर को याद करते हुए चले गये ।

दूसरे दिन फिर वही देव वापस दिखाई दिये पर इस बार संत ने ध्यान नहीं दिया और अपनी मस्तानी चाल में चल दिये।इतने में देव ने कहा आज नहीं देखोगे डायरी । तो संत मुस्कुरा दिए और कहा, दिखा दो और जैसे ही डायरी खोलकर देखा तो, सबसे ऊपर उन्ही संत का नाम था
इस पर संत हँस कर बोले क्या ईश्वर के यहाँ पर भी दो-दो डायरी हैं क्या ? कल तो था नहीं और आज सबसे ऊपर है ।
इस पर देव ने कहा की आप ने जो कल डायरी देखी थी, वो उनकी थी जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं । आज ये डायरी में उन लोगों के नाम है, जिनसे ईश्वर स्वयं प्यार करता है ।
बस इतना सुनना था कि वो संत दहाड़ मारकर रोने लगे, और कितने घंटों तक वही सर झुकाये पड़े रहे, और रोते हुए ये कहते रहे हे ईश्वर यदि में कल तुझ पर जरा सा भी संशय कर लेता तो मेरा नाम कही नहीं होता । पर मेरे जरा से संतोष पर तु मुझ अभागे को इतना बड़ा पुरस्कार देगा । तू सच में बहुत दयालु हैं तुझसे बड़ा प्यार करने वाला कोई नहीं और बार-बार रोते रहे।।

ईश्वरीय शक्तियाँ और वरदान तो सूक्ष्म हैं। जैसे बरसात पड़ती है तो प्यासी धरती उसे सोख लेती है और बदले में हरी भरी होकर जगत की पालन करती है। सूर्य की धूप आती है उसे मानव शरीर, पेड़-पौधे, जीव-जंतु ग्रहण कर उपयोग में लाते हैं। हवा चलती है उससे भी मानव तथा पर्यावरण लाभान्वित होता है। ये सब भौतिक शक्तियाँ हैं जिन्हें स्थूल जगत प्राप्त करता है और अपनी क्रियाओं को चलाता है। परमात्मा तेरी मुझपर सर्वदा अनुकम्पा है



प्रेषक-
बन्दीछोड कबीर साहेब

Sunday, May 17, 2020

सन्त खुद उदाहरण बनते हैं राधा ास्वामी जी


राधा ास्वामी जी 


"सन्त खुद उदाहरण बनते हैं...."

"आज हमें एक बहुत बड़ा संदेश मिला है,एक उदाहरण मिला है।हम छोटी छोटी बातों पर सतसंग जाना या सेवा में जाना ही कैंसिल कर लेते है।इतनी बड़ी घटना के बाद भी सतगुरु ने अपनी सेवा में लेशमात्र भी परिवर्तन नहीं किया,न ही गम और मायूसी की एक शिकन तक अपने चेहरे पर आने दी।यह संत का मूक संदेश होता है। बोल बोल के तो सतगुरु थक गए है, अब अपने कर्मों से उदहारण दे कर भी हमें समझा दिया है कि जो बोला और सुना जाता है, उस पर चलना भी है।बहुत पहले सत्संग में एक साखी सुनी थी एक सन्त का बेटा रात में गुजर जाता है ,सन्त उससे बहुत प्यार करता है।अगले दिन सुबह संगत सत्संग सुनने आती है सन्त की पत्नी सोचती है आज सत्संग नहीं होगा,लेकिन निश्चित समय पर सन्त बाहर आते हैं और सत्संग करते हैं,बाद में पत्नी के पूछने पर कहते हैं उसने दिया था,वो वापिस ले गया उसका शुक्रिया है" आज उसी तरह देखो गुरुमां का अभी तक संस्कार भी नहीं हुवा है....और सतगुरु ने अपनी सेवा में कोई परिवर्तन नहीं किया है....शायद सतगुरु हमें इससे ऊपर कोई उदाहरण नहीं दे सकते....आइये आज हम भी संकल्प करे कि सतसंग और सेवा को कभी घर-परिवार की छोटी छोटी बातों के कारण न छोड़े।सतगुरु स्वार्थ और परमार्थ दोनो सुधारेगा।🙏🏻🙏🏻🙏🏻"



राधा ास्वामी जी 


बहुत ही प्यारा शब्द दीं दयाल सतगुरु राधा स्वामी शब्द ब्यास 








मुम्बई भायंदर में आज के सत्संग पश्चात सवाल जवाब के वक़्त


राधास्वामीजी




मुम्बई भायंदर में आज के सत्संग पश्चात सवाल जवाब के वक़्त एक सवाल आया एक लड़की का
कि मेरा मायका ब्राम्हण समाज से है पर हमने नामदान लिया हुआ है तो श्राद्ध के वक़्त मायके से बारबार न्यौता आता है खाना खाने के लिए तो पति नही जाने देते , कहते हैं कि उनके पास यहाँ वहाँ से आटा घी चावल आए हुए होते हैं हमने नही खाना चाहिए तो इस पर क्या किया जाए
बाबाजी कहते हैं आप खुद जो सही समझें वह करें पर हमेशा देने का भाव रखें लेने का नही
एक ही लाइन में बहुत बड़ी बात कह दी मालिक ने
समझें तो बस इतना ही काफी है हमारे लिए
आज की जेहन में अटकी सबसे बड़ी बात👆🏻
राधास्वामीजी


SATSANGIS ARE SPECIAL


SATSANGIS ARE SPECIAL, AND NON— SATSANGIS ARE......"



Many of us label everyone who has been initiated as "satsangi" and call other people "non satsangi". In this way we veiw the sangat as if it were an exclusive club, as if all the "members of this club" are special, or even superior to those who are not initated. Calling people satsangis or non satsangis  or "Radha Soamis we slip mindlessly into the age - old human tendency of drawing a sharp line between" us"and "them"
What do we mean when we say "I come from a satsangi family" or "Do you come from a satsangi family"? How can a family be "satsangi"? Sat means truth, and Sang means association with. Satsangi means one who is in the company of truth. A real satsangi is one who has merged in the "SHABD" merged in Spiritual Truth. The rest of us are seeking. We may call ourselves initiates, we may call ourselves Seekers. If we're honest and think clearly, we'd hesitate to call ourselves "SATSANGIS"
Some of us frame our choice of a marriage partner in terms of satsangi vs non- satsangi. Some of us name our business Radha Soami grocery shop. We print stickers or paint Radha Soami on our cars to advertise to the world that we belong to the "satsangi" club
What are we doing? Aren't we treating our Master's sangat as if it were an exclusive social group? Aren't we making a division of "us" vs "them"? When we label others as non - satsangis do we judge them as being either inferior or somehow misguided or just simply "not one of us"?
In question and answer sessions whenever a questioner refers to someone as a non - satsangi, the present Master says something like : HOW DOES IT MAKE A DIFFERENCE? A satsangi is one who has realized the Shabd. We are still seeking, so there is no difference.
When someone complains about other's criticizing our way of life, Master says something like : if you want them to respect your way of life, you have to respect their way of life. Who are we to say our philosophy is right and theirs is wrong?. He often points out that the Lord's love is there for each and every being in equal measure. In the Lord's eyes, all the distinctions we make –cast, creed, religion – do not exist. For the Lord, we are all souls yearning for union with Him.
In his satsangs the present Master often hammers  home the point that Huzur spent 40 years helping us to go beyond our religions, caste, countries and colour. So why He asks, are we creating new boundaries?
"LETS NOT DIVIDE GOD'S UNDIVIDED FAMILY INTO" US AND " THEM"

RADHA SWAMI JI 




Q&As answered during Babaji’s Singapore Satsang 2020.



Some key take aways from Q&As answered during Babaji’s Singapore Satsang 2020.


1. As long as you are doing simran, I am present with you.
2. An achiever makes spiritual progress as well as material progress. It is good to be ambitious, but be mindful of the means to get there. Yet, your priority must always remain spiritual progress within.
3. Just show up for meditation. You have to do nothing else. He will do the rest.
4. Do not have any expectations from your meditation or not do it for any purpose. Do it simply because it pleases Him, and since He has asked you to do it.
5. Eat simple food and less variety. Just Dal Roti is enough. Only eat to live.
6. No matter what others think or make fun of you, you stick to the principles.
7. Do not react. Just walk away, if necessary. Don’t be a door mat. If you do not react, you will create no karma.
8. Do not lie. If you cannot say the truth, do not answer - keep quiet.
9. Divorce is not part of destiny, and is not endorsed. You committed to stay married through good times and tough times, and only let death do you apart.
10. We all wish to become one with the Father. So if the Lord showers His Grace on our partner or loved ones and takes him/her back, then we should accept His will, and be happy. Not sad.
11. Do not just keep talking about climate change and problems of the world. Do your mediation and change yourself within. Then automatically, you will love His creation more and take action and not just talk. And yes, one should use less plastic and take steps to save the environment.
12. Meditation is the only thing that keeps you sane in this world. If you won’t do it, you will be swept away in this creation, and it is the reason for your suffering.

यह कहानी अवश्य पढ़ें और चिंतन करें राधा स्वामी जी

राधा स्वामी जी 


यह कहानी अवश्य पढ़ें और चिंतन करें।



एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके.
चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा.
कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया.
कपड़े बदलकर वापस सत्संग  की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले.
फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया.
जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है.
 इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया. पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें.
लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर  में दाखिल नही हुआ.
दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...?
दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ,
 ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा।
काल  ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था.
जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर  की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए. जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए.
मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर  चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे. इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ.

अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर  पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं। क्यों....???
क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं।
उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया। क्यों...???
क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।
 इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था !

इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।
एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।
बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।
इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी...

                    🙏🏻राधा स्वामी जी 

राधास्वामी जी

हर  नामें  तुल  न  पुजई सभु  दिठी  ठोक  बजाय सच्चे  नाम  के  सिवा  कोई  पूजा  नहीं । चाहे  कितने  पुन्य  दान  करो , मंदिरों ,  मस्जिदो...